मायोकार्डिटिस के कारण, लक्षण और बचाव । What is myocarditis ! myocarditis in hindi
What is myocarditis?
मायोकार्डिटिस क्या है?
मायोकार्डिटिस में दिल की मांसपेशियों में सूजन व लालिमा आने लगती है, इन मांसपेशियों को मायोकार्डियम (Myocardium) कहा जाता है। मायोकार्डिटिस आपके हृदय व आपके हृदय के इलेक्ट्रिकल सिस्टम (विद्युत प्रणाली) को प्रभावित कर सकता है। जिससे दिल की खून पंप करने की क्षमता कम हो जाती है और दिल की धड़कनें अनियमित (एरिथमिया) हो जाती है।
मायोकार्डिटिस आमतौर पर वायरल इन्फेक्शन के कारण होता है लेकिन कुछ प्रकार की दवाओं या सामान्य सूजन व जलन संबंधी समस्या के परिणामस्वरूप भी हो सकता है। इसके संकेत व लक्षणों में छाती में दर्द, थकान, सांस फूलना और दिल की धड़कनें अनियमित होना आदि शामिल है।
यदि मायोकार्डिटिस गंभीर रूप से हो जाता है तो वह आपके हृदय को कमजोर बना देता है, जिससे आपका हृदय पूरे शरीर में पर्याप्त मात्रा में खून नहीं पहुंचा पाता। गंभीर मायोकार्डिटिस में हृदय में खून के थक्के भी जमने लगते हैं जिससे स्ट्रोक और हार्ट अटैक जैसी समस्याएं आने लगती है।
मायोकार्डिटिस के कारण- Myocarditis Causes :
वायरस – कई वायरस हैं जो आमतौर पर मायोकार्डिटिस से जुड़े होते हैं, जिनमें एडीनोवायरस (Adenovirus), हेपेटाइटिस बी और सी वायरस, परवोवायरस (ये वायरस आमतौर पर बच्चों की त्वचा पर हल्के चकत्ते पैदा देते हैं) और हर्पीस सिम्पलेक्स वायरस आदि शामिल हैं।बैक्टीरिया – ऐसे कई प्रकार के बैक्टीरिया हैं जो मायोकार्डिटिस का कारण बन सकते हैं, इनमें स्ट्रेप्टोकोकस (Staphylococcus), स्टैफिलोकोकस (Streptococcus), डिप्थीरिया पैदा करने वाले बैक्टीरिया और टिक-बोर्न बैक्टीरिया (Tick-borne bacterium) जो लाइम रोग (Lyme disease) का कारण बनते हैं।
इनमें पैरासाइटिस (परजीवी) – ट्रिपैनोज़ोमा क्रूजी (Trypanosoma cruzi) और टोक्सोप्लाज्मा (Toxoplasma) तरह के कुछ परजीवी हैं, जिनमें कीटों द्वारा फैलने वाले और चागस रोगों का कारण बनने वाले पैरासाइटिस भी शामिल हैं। यह बीमारी संयुक्त राज्य अमेरिका की तुलना में मध्य और दक्षिण अमेरिका में अधिक प्रचलित है, लेकिन दुनिया के अन्य क्षेत्रों से इन क्षेत्रों में घूमने वाले लोगों में भी यह रोग हो सकता है।
फंंगी – यीस्ट संक्रमण, कैंडिडा जैसे कुछ प्रकार के फंगी जो पक्षियों के मल में पाए जाते हैं वे कभी-कभी मायोकार्डिटिस का कारण बन सकते हैं। यह विशेष रूप से उन लोगों में होता है जिनकी प्रतिरक्षा प्रणाली कमजोर होती है।
मायोकार्डिटिस के लक्षण – Myocarditis Symptoms :
यदि मायोकार्डिटिस गंभीर नहीं है या शुरूआती चरणों में है, हो सकता है आपको कोई लक्षण महसूस ना हो या हल्के लक्षण महसूस हों, जैसे छाती में दर्द या सांस फूलना आदि।
मायोकार्डिटिस की गंभीर स्थिति में इसके संकेत व लक्षण इस रोग के कारण के अनुसार अलग-अलग हो सकते है। मायोकार्डिटिस के सामान्य लक्षण व संकेतों में निम्न शामिल हो सकते हैं।
छाती में दर्द,हृदय की धड़कनें तेज या अनियमित होना।
कुछ काम करते समय या आराम करते समय सांस फूलना
पैर, टखनों और टांगों में सूजन के साथ-साथ फ्लूड रिटेंशन (Fluid retention) होना।
थकान , वायरल इन्फेक्शन से जुड़े अन्य संकेत व लक्षण जैसे सिरदर्द, शरीर में दर्द, जोड़ों में दर्द, बुखार, गले में दर्द या दस्त लगना आदि।
बच्चों में मायोकार्डिटिस –
मायोकार्डिटिस जब बच्चों में होता है तो उनको निम्न संकेत व लक्षण हो सकते हैं:
बुखार।
बेहोशी।
सांस लेने में दिक्कत।
सांसे तेज होना ।
दिल की धड़कनें तेज व अनियमित होना।
मायोकार्डिटिस के बचाव – Prevention of Myocarditis :
इसकी रोकथाम करने का कोई विशिष्ट तरीका नहीं है, हालांकि निम्न तरीके अपना कर संक्रमण की रोकथाम करने से भी मदद मिल सकती जैसे:
जिन लोगों को वायरल और फ्लू जैसी बीमारियां हैं उन लोगों को दूर रहें जब तक वे पूरी तरह से ठीक नहीं हो पाते – यदि आप वायरल संबंधी किसी बीमारी से ग्रस्त हैं तो अन्य स्वस्थ लोगों के संपर्क में आने से बचें।
अच्छा स्वच्छता को अपनाएं – रोज़ाना नियमित रूप से हाथ धोना भी बीमारियां फैलने से रोकथाम कर सकता है।
जोखिम भरी गतिविधियों से बचें – एचआईवी से संबंधित मायोकार्डियल संक्रमण होने की संभावनाओं को कम करने के लिए, सुरक्षित यौन संबंध बनाएं (जैसे कंडोम का इस्तेमाल करना) और नशीले पदार्थों का उपयोग करने से बचें।
कीटों (Ticks) के संपर्क में आने से बचना – यदि आप ऐसी जगह पर समय बिता रहे हैं जहां पर अधिक कीट है, तो उस दौरान पूरी बाजू के की शर्ट और लंबी पैंट या पजामा आदि पहन कर रखें और जितना हो सके अपनी त्वचा को ढक कर रखें। कीटों को दूर भगाने वाली क्रीम व स्प्रे आदि का इस्तेमाल करें जिनमें डीईईटी (DEET) आदि शामिल हों
टीकाकरण करवाएं – रूबेला, इन्फ्लूएंजा व अन्य रोग जो मायोकार्डिटिस रोग पैदा कर सकते हैं उनसे बचाव करने डॉक्टरों द्वारा निर्धारित किये जाने वाले टीकों को समय-समय पर लगवाते रहें।