Blatta Orientalis Q संसार में तहलका मचा देने वाली मेडिसन के चमत्कारी प्रयोग

 

Blatta Orientalis Q संसार में तहलका मचा देने वाली मेडिसन के चमत्कारी प्रयोग।


Blatta Orientalis Q संसार में तहलका मचा देने वाली मेडिसन के चमत्कारी प्रयोग


   55 वर्ष का एक दुबला पतला रोगी पिछले 25 वर्षों से इस रोग से ग्रस्त था। उसका यह रोग पैतृक था। पिछले 6-7 वर्षो से उसका रोग बहुत बढ़ गया था, उसको दिन में कई-कई बार दमे के दौरे पड़ते जिनके कारण 5-6 वर्षों से वह रात को आराम से सो तक न सका था, गाढी जमी हुई बलगम काफी मात्रा में आती थी वह रात को बैठकर तकिया पर सिर रखकर थोड़ा-बहुत सो सकता था। दिन को उसको कष्ट न होता परन्तु रात को वह जल बिन मछली की भाँति तड़पता, संसार की किसी दवा से उसका रोग दूर नहीं हुआ था कष्ट को कम करने के लिए वह अफीम खाने लग गया था। शुरू में तो अफीम से उसको कुछ लाभ हुआ परन्तु आदत पड़ जाने के कारण वह 24 घण्टों में 2-3 माशा तक अफीम खा जाता था। वर्षों तक तकिये पर झुके रहने के कारण उसकी कमर झुककर कुबड़ी हो चुकी थी। उसको रात के समय कई कई बार दमे के दौरे पडते साँस सख्त कठिनाई से आता। वर्षो तक दौरे पड़ने के कारण वह इतना कमजोर हो गया था कि बलगम तक को बाहर न निकाल सकताया।


* 23 मई सन् 1889 रात के तीन बजे मैं उसको देखने गया। उस समय एक दूसरे डॉक्टर उसको देखकर बाहर निकल रहे थे। उसने मेरे कान में धीरे से कहा कि रोगी की अवस्था चिन्ताजनक है और उसके बचने की कोई आशा नहीं है। मैंने रोगी को बड़ी कठिनाई से साँस लेते देखा। मूर्छा जैसी अवस्था जबड़े जकड़े हुए मुँह के कोनों से लार बह रही थी, शरीर ठण्डा, नाड़ी बहुत कमजोर और उसकी हालत मुर्दे की भाँति थी। दमे के तीव्र दौरे पड़ने के कारण रोगी की दशा चिन्ताजनक हो चुकी थी। अन्तिम समय समझकर उसके सगे-सम्बन्धी उसके पास जमा हो चुके थे और उसकी मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। ऐसी अवस्था में उसको दवा देने से कोई लाभ दिखाई नहीं देता था तो भी मैंने इस दवा को थोड़े पानी में मिलाकर उसके मुँह में डालने का यत्न किया परन्तु जबड़े जकड़े होने के कारण दवा अन्दर न जा सकी। उसके बचने की कोई आशा नहीं थी। फिर भी दवा देकर आदेश दिया कि पानी में मिला थोडे-थोड़े समय बाद पिलाते रहें। दूसरे दिन रोगी का एक संबंधी मेरे पास आया और बताया कि रोगी को आराम है। मैं चकित सा रह गया और रोगी को देखने चला गया। उसकी नाड़ी पहले से बहुत शक्तिशाली थी, जबड़े खुल चुके थे। रोगी दवा पी लेता था और बलगम भी आसानी से निकल जाती, साँस लेने का कष्ट भी कम हो चुका था परन्तु मेरी राय में अब भी उसके बचने की कोई आशा नहीं दिखाई देती थी। मैं उस दवा की कुछ मात्रायें देकर चला आया। अगले दिन उसके सम्बन्धी ने बताया कि रोगी तमाम रात आराम से सोया रहा, उसको होश आ चुका था, वह बैठा था साँस कठिनाई से आने का कष्ट बिल्कुल दूर हो चुका था और वह धीमी आवाज में बातें कर रहा था बलगम पतली होकर आसानी से अधिक मात्रा में निकल रही थी। इस दवा को देते रहने से 8-10 दिनों में रोगी के कष्ट दूर हो गये और रोगी रात को आराम से सोया रहता एक दो मास तक यही दवा देते रहने से उसका 25 वर्ष का पुराना दमा बिल्कुल दूर हो गया।


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