Hemidesmus Indicus Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi

 

Hemidesmus Indicus Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi.


Hemidesmus Indicus Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi


हेमीडेसमस इण्डिका (Hemidesmus Indicus Q )


विभिन्न नाम- हि अनन्तमूल व अनन्तमूल, म उपलसर गु उपलसरी, ते पालसुगन्धी, ता. नन्नारी क नमङबेरु, अ. Indian Sarsaparilla (इण्डियन सासपैिरल्लिा) | यद्यपि यह देश के सब प्रान्तों में पाया जाता है, फिर भी बिहार, बंगाल, सुन्दर वन, मध्य प्रदेश एवं पश्चिमी घाट आदि स्थानों में अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है। इसकी लता बहुर्षायु, पतली, फैलने वाली एवं लिपटते हुए ऊपर चढ़ने वाली होती है। इससे प्रस्तुत मदर टिंक्चर्ज मूत्र पैदा करने वाला मूत्र निकालने वाला पसीना लाने वाला, अग्निवर्धक, चर्म दोष (रोग) नाशक, रक्त शोधक, शारीरिक आन्तरिक क्रियाओं के लिये उत्तेजक, शक्तिदायक शारीरिक जलन को कम करने वाला है। इसका प्रयोग ज्वर कुष्ठ, कण्डू, त्वचा के अन्यान्य रोग, फिरंग, जीर्ण आमवात प्रदर अग्निमांद्य, अरुचि, अतिसार प्रमेह एवं श्वास-प्रश्वास के रोगों में किया जाता है। इसकी विशेषता यह है कि मूत्र की मात्रा तो बढ़ाती है, गुर्दे की कार्यक्षमता में वृद्धि करती है लेकिन गुर्दों पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं डालती है। ज्वर में सेवन कराने से पसीना लाना इसका स्वाभाविक गुण है। अतः साथ में ज्वरशामक अन्य सहयोगी औषधि/ औषधियों का प्रयोग भी अवश्य करें। वृक्कों में सूजन (Nephritis). मूत्र गाढा एवं लाल रंग का हो तो इसका प्रयोग करें। उपदेश की द्वितीय अवस्था में एवं अन्य चर्म रोगों में इसके सेवन से आशातीत लाभ होता है। कामला एवं दुर्बलता में भी इसका प्रयोग होता है। यह ध्यान रहे कि इन दोनों रोगों में (कामला एवं दुर्बलता) यह अपेक्षाकृत बच्चों में अधिक उपयोगी है। प्रदर रोग में यह उपयोगी है। उपदेश या सुजाक दोष के कारण बार बार गर्भस्राव या गर्भपात हो जाता हो तो इसको नियमित दें। गर्भ सुरक्षित रहेगा। यदि गर्भाधान के बाद से ही इसका सेवन गर्भवती प्रारम्भ कर दें तो गर्भ रक्षित रहेगा. बच्चा स्वस्थ, सुन्दर, पुष्ट और गोरा भी होगा। नेत्राभिष्यन्द (आँख आना) में इसे परिश्रुत जल या गुलाबजल में (1 9) मिलाकर बूंद-बूंद कर डालने से शीघ्र लाभ होता है। यदि कोई व्रण जल्दी नहीं ठीक हो रहा हो तो इसके घोल से धोकर इसी की पट्टी करनी प्रारम्भ कर दें तो व्रण जल्दी अच्छा हो जायेगा। यह एक उत्तम रक्तशोधक है। अतः इसके योग से, आयुर्वेद में एक सालसा (अनन्त सालसा) उपलब्ध है जिसे चर्मरोग नाशक औषधि के रूप में सेवन किया जाता है।


मात्रा- 5 से 15 बूँदें प्रतिदिन 2-3 बार पानी में मिलाकर दें।


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