Saussurea Lappa Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi
Saussurea Lappa Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi.
सॉस्सुरिया लप्पा ( Saussurea Lappa Q )
विभिन्न नाम-हि. कूठ, कूट कुष्ट, बं. पाचक, कुर, म. कोष्ठ, गु. उपलेट, कठ, क. कोष्ट, ते. वेंगुल कोष्टम प. कुठ्ढकुट फा. कुष्ठ ई. तल्ख, अ. कुस्त बेहेरी काश्मी, पोस्तेखे, भोटिया, कुष्ट ता. कोष्टम् अं. Costus Root (फॉस्टस रूट ) ।
इसका क्षुप काश्मीर तथा आसपास के आर्द्र ढालों पर 8000 से 13000 फीट की ऊँचाई तक चनाब और झेलम नदियों के आसपास के प्रदेशों में 10,000 से 13,000 फीट की ऊँचाई तक पाये जाते हैं। इसका मूल अर्क (Mother Tinct.) स्नायुतंत्र, श्वास संस्थान, पाचन संस्थान एवं माँसपेशियों में प्रभावकारी है जिससे अनेकानेक रोगों में लाभ होता है। यह स्वभाव से उष्ण, पाचनशक्ति को सुधारने में सक्षम, वमन निरोधक, आशिक रूप से पेशाब में वृद्धि करने वाला, मासिक स्राव जारी करने वाला, कफ को बाहर निकालने वाली, चर्म दोषनाशक, प्रतिदूषक (Antisepic) और उपसर्गनाशक (Disinfectant) है। श्वास एवं फुफ्फुस के अन्य विकार हैजा, अपस्मार, आमवात, वातकफ जवर, हृदयोदर, जलोदर एवं शिर शूल आदि में भरोसे के साथ प्रयोग की जाती है।
दमा (Asthma) के रोगी के लिये यह एक संजीवनी है। दौरा का प्रचण्ड रूप चाहे कैसा भी कष्टदायक क्यों न हो, आधा से 2 ड्राम तक मदर टिंक्चर्ज थोड़े जल में मिलाकर दें। देखते-देखते ही शांति मिल जायेगी। साथ ही किसी भी अन्य प्रकार के कुलक्षण की भी संभावना नहीं रहती है। रोगी शांति की नींद सोता है।
पाचन विकार जैसे अजीर्ण, कुपचन, शूल, आध्मान, अतिसार एवं विशूचिका जैसे रोगों में इसकी आवश्यकतानुसार प्रतिदिन 3-4 मात्रायें, हैजे में पूर्ण लाभ होने तक प्रतिघंटा देते रहने से आशातीत लाभ होता है। हृदय की दुर्बलता से उत्पन्न जलोदर में भी इसका उपयोग किया जाता है। इसके सेवन से पाचन में सुधार एवं मूत्र की वृद्धि होती है जिससे हृदय की दुर्बलता एवं सूजन मिट जाती है। आमवात में भी इसके सेवन से लाभ होता है।
इसके नियमित सेवन से सर्वाधिक विकास होता है जिससे आयु की वृद्धि एवं शरीर की काति बढ़ती है। शिरोरोग, तीसरे दिन होने वाला ज्वर, कुष्ठ एवं कृमि रोगों में यह उपयोगी है। बार-बार जिन्हें हिचकी आने की शिकायत हो, उन्हें कुछ दिन इसका प्रयोग करना चाहिये, लाभ होगा।
व्रणों पर इसके मदर टिक्चर्ज को सफेद वैसलीन में मिलाकर प्रतिदिन 3-4 बार लगाने से लाभ होता है। अरुषिका, जिस रोग में सिर में क्लेदयुक्त फोड़े-फुन्सी उत्पन्न हो जाते हैं, में इसका सेवन उत्तम है। शिरो रोग में आन्तरिक सेवन के साथ-साथ इसके मूल अर्क को नारियल के तेल (19) में मिलाकर सिर में मालिश भी करें। इसी प्रकार (19) गुलाबजल में घोल बनाकर सूजन, उदरवृद्धि, शिर शूल एवं मोच आदि में लगाने से लाभ होता है। यदि दन्तशूल हो तो रुई को इसके मदर टिंक्चर्ज में भिगोकर दाँतों की जड़ में या कीड़े लग हो तो गढ़े में रखें। मात्रा- 5 से 20 बूँदें कर पानी में मिलाकर प्रतिदिन 3-4 बार।