Arsenicum Bromatum 30 Symptoms Uses and Banefit in Hindi
Arsenicum Bromatum 30 Symptoms Uses and Banefit in Hindi
आर्सेनिकम ब्रोमेटम (Arsenicum Bromatum)
रक्त दोष, चर्म रोगों, शरीर में विषैले तत्वों, सोरा आदि की उपस्थिति, फोड़े फुन्सियों, उपदंश के विष और घावों, कंठमाला, पुराने बारी के ज्वरों, मलेरिया, मूत्र में शक्कर आने और शरीर से विषैले तत्वों को निकालने के लिये चोटी की सफल दवा है। यह दवा संखिया और ब्रोमीन से बनाई गई है और वर्षों तक प्रयोग करने पर भी बिल्कुल हानि नहीं पहुँचाती। नमली फोड़े-फुन्सियाँ, उभार, उपदंश के घाव आदि अनेक प्रकार के चर्म रोगों में यह दवा लाभप्रद है। फोड़ों से पीप आनी बन्द हो जाती है। कंठमाला की गिल्टियाँ और ग्रन्थियों के दूसरे उभार और रसूलियाँ, रक्त दोष से उत्पन्न उभार, ट्यूमर, खुजली, एक्जीमा, चम्बल आदि इसके निरन्तर प्रयोग से ठीक हो जाते हैं और रोगी का शरीर कुन्दन की भांति शुद्ध हो जाता है। उसकी शारीरिक, मानसिक और स्नायुविक शक्ति बढ़ जाती है। कैन्सर के रोगियों को दीर्घ काल तक यह दवा प्रयोग कराते रहने से यह भयानक रोग बढ़ना रूक जाता है। उपदंश रोग से उत्पन्न पृष्ठ रज्जु दुर्बलता में यह दवा बहुत लाभकारी सिद्ध हुई है। आमाशय के घावों से पीप निकलना, अन्तड़ियों का ठीक काम न करना, अजीर्ण, पुरानी कब्ज, बारी के पुराने ज्वर, रक्त में पुराने मलेरिया के विषैले प्रभाव, मलेरिया के कारण प्लीहा (तिल्ली) बढ़ जाना आदि रोग भी दूर हो जाते हैं। भूख और शक्ति बढ़ जाती है। रक्त दोषो के रोगियों को इसकी एक बूँद एक गिलास जल में मिलाकर काफी समय तक पिलाते रहने से ऐसे पुराने रोग दूर जाते हैं जो हजारों रूपये खर्च करने, बहुमूल्य पेटेंट दवाओं और इन्जेक्शनों के प्रयोग से भी ठीक नहीं हो सके थे।
उपदंश का एक रोगी जो पारे से बनी दवाओं के प्रयोग से स्वस्थ हो चुका था, 6 वर्ष पश्चात् उसके माथे, कनपटियों और नाक के पास उपदंश के विष के कारण पुनः फुन्सियाँ निकल आई। इन फुन्सियों पर सख्त बदबू वाली पपड़ी जम जाती थी। रोगी का चेहरा कुरूप हो गया था। चिकित्सा करने पर भी लाभ नहीं हुआ। चेहरा उपदंश के घावों से भरा हुआ था। इन घावों से पीप और रक्त निकलते रहते। फुन्सियों के आस-पास का स्थान लाल था। रोगी को खाँसी भी थी और अधिक मात्रा में बलगम निकलता अर्थात् उसको क्षय रोग आरम्भ हो चुका था। उसको 4 दवा एक गिलास पानी में मिलाकर दिन में 2 बार दी जाती रही। 2 सप्ताह के यह पश्चात् फोड़ों की पीप खुश्क होने लग गई। रोगी की भूख बढ़ गई।
एक स्त्री को कई चर्म रोग हो चुके थे। उसके बाल समय से पहले सफेद हो चुके थे। उनसे भूसी झडती, कान से पीप आती थी। उसकी गर्दन की ग्रन्थियाँ शोध युक्त थी। उसके एक स्तन पर मुद्री के बराबर रसूती थी जिसको दबाने पर उसमें दर्द होता। नाखूनों का रंग खराब था। उसके शरीर से सख्त बू आती थी जिसके कारण वह दूसरों से अलग-थलग रहती। हाथों में खुजली होती थी और खुजली के कारण फुन्सियों से लेसदार पीप निकलती थी। 9-10 वर्षों से वह इन रोगों से ग्रस्त थी। उसको 2 बूंदें दवा प्रात:- सायं एक गिलास पानी में मिलाकर एक मास तक दी जाती रही। एक मास के पश्चात् 4 बूंदें दवा दिन में 2 बार पिलानी आरम्भ की गई। 2½ मास के पश्चात् उसके रोग दूर होने आरम्भ हो गये। स्तन की रसूली छोटी हो गई और उसका दर्द दूर हो गया। 4 मास पश्चात् कान से पीप आनी दूर हो गई और दूसरे चर्म रोगों को आराम आने लग गया। रक्त में विषैले पदार्थ की अधिकता के कारण उसका रोग ठहर ठहर कर बढ़ जाता था परन्तु इस दवा के निरन्तर प्रयोग से रक्त साफ होता गया और विभिन्न रोग भी दूर होते गए। यह दवा मूत्र बहुत अधिक आने और मूत्र में शक्कर आने (मधुमेह) में भी बहुत गुणकारी है। मधुमेह के पुराने से पुराने रोगी इस दवा से स्वस्थ हो जाते हैं।
मात्रा- 2 से 4 बूंदें दवा एक गिलास ताजा पानी में मिलाकर दिन में 2 बार कई मास तक पिलाते रहें। इस दवा में संखिया अल्प मात्रा में है अतः हानि का भय नहीं।