Asafoetida Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi
Asafoetida Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi.
एसाफोटिडा या फेरुला नार्थेक्स – Asafoetida or Ferula Narthex Q
विभिन्न नाम-हि. हो नं. लि. पं. हिंगे, म. हिंग, मा. हींग, गु. हिंगड़, से, रता पेनियम, हिंदु फा. अंगूजर अ. हिल तीन अ. Asqfoetide (एसाफोटिया)
ही वस्तुत: एक प्रकार के वृक्ष का गोंद है। यह वृक्ष काबुल, हिरात, खुरामान, फारस, अफगानिस्तान आदि देशों में होता है। जो चार वर्ष से अधिक के हो जाते है, उन्हें भूमि के पास वाली जड़ को तिरछे तराशने से जो रस निकलकर सूख जाता है, उसे दो दिन बाद सच कर संग्रह किया जाता है। कच्ची अवस्था में हींग अशुद्ध होता है। इसे शुद्ध करके सेवन किया जाता है, फिर इससे मूल अर्क तैयार होती है।
इसका मूल अर्क (Mother Tincture) पाचन संस्थान की महौषधि पेट में गैस बनना अजीर्ण, अपच, मन्दाग्नि, के कारण उदरशूल आदि में यह सफल बना है। इसके प्रयोग से उल्टी का शमन होता है। यह दुर्गन्ध फको निकलने वाली नाहियों के लिये अलकारक, कृमि को नष्ट करने वाली है। इसका अधिकतर प्रयोग आध्मान (अफारा Flatulence) अपस्मार, अपतंजक, वातविकार, वास रोग (दमा), खाँसी, कुकुर लाँसी, संहव्यूल (Angina Pectoris) आदि में होता है।
जीर्ण (पुराना) श्वासनलिका शोध, दमा, कुकुर साँसी, बच्चों के फुफ्फुसपाक एवं शुष्क कास आदि में इसके प्रयोग से लाभ होता है। आन्तरिक सेवन के साथ-साथ इन परिस्थितियों में मूल अर्क को तेल या ग्लीसरीन में मिलाकर बाहरी प्रयोग करना भी उचित है। विषम ज्वर में भी इसे देने से लाभ होता है। मूर्च्छाजनित या मूर्च्छायुक्त किसी भी रोग इसके मूल अर्क का नियमित सेवन एवं मूर्च्छाकाल में रुई को मूल अर्क में भिगोकर रोगी को सुधाने से मूर्च्छा ठीक हो जाती है। प्रसव के बाद इसके सेवन से आर्तव की शुद्धि होती है। परिणामस्वरूप सूतिका ज्वर वगैरह की संभावना टल जाती हैं। जिन्हें बार-बार गर्भपात हो जाता हो उन्हें गर्भाधान के बाद से ही नियमित सेवन कराये तो गर्भपात की संभावना टल जाती है। मदर टिक्चर्ज का घोल गुदामार्ग में डाला जाये (1-2 मि.लि ) तो सूत्र कृमि नष्ट हो जाते हैं। कुकुर खाँसी में इसके मूल अर्क को तेल या ग्लीसरीन में मिलाकर छाती (Chest) पर मलें। यदि बच्चों को पेट फूलने की शिकायत हो तो मूल अर्क में तारपीन के तेल कुछ बूंदे मिलाकर हाथ से पेट पर हल्के हाथों से लगायें। देखते देखते कष्ट मिट जायेगा। कीड़े लगे दाँत के गढ़े में मूल अर्क में रुई भिगोकर रखें। तत्काल लाभ प्रतीत होगा।
मात्रा– 5 से 15 बूँदे, बच्चों को 3-5 बूँद प्रतिदिन 3-4 बार आवश्यकतानुसार पानी में मिलाकर दें।