Calotropis Gigantea Q homoeopathic medicine in hindi benefit and symptoms
Calotropis Gigantea Q homoeopathic medicine in hindi benefit and symptoms.
आक
(Calotropis Gigantea )
विभिन्न नाम:- उर्दू मदार, अर्बी अशर, गुजराती आकड़, सिंधी-अक, तेलुगू-मंदर
यह दवा आयुर्वेदिक और यूनानी चिकित्सा पद्धति में सैंकड़ों वर्षों से प्रयोग की जा रही है। इसके पत्ते, फूल, जड़ और दूध दवा के रूप में काम में लाये जाते हैं। वैद्य और हकीम इसको कुष्ठ रोग, फीलपाँव (श्लीपद अर्थात् पाँव सूजकर हाथी के पाँव की भाँति मोटा हो जाना), अंडकोष सूज जाना, पेट के कीड़ो, उपदंश और कई अन्य रोगों में प्रयोग करते हैं। इससे तैयार किया हुआ टिंक्चर प्रत्येक चिकित्सक बहुत आसानी से प्रयोग कर सकता है। यह दवा श्लीपद, लूपस, कुष्ठ रोग, उपदंश और उसके घावों, जोड़ों का पुराना दर्द और चर्म रोगों में बहुत गुणकारी है। फिलेडेलफिया (अमेरिका) के डॉक्टर ग्राहम ने इसके टिक्चर से उपदश के ऐसे रोगी भी स्वस्थ बना लिए जो पारा और उससे बनी एलोपैथिक दवाओं और इन्जेक्शनों से स्वस्थ नहीं हो सके थे।
जब अँगुलियों के नाखूनों वाला भाग उपदंश रोग की अधिकता के कारण सख्त हो जाए तो इस दवा से तुरन्त लाभ होता है। आयुर्वेद की पुरानी पुस्तकों में इसको वनस्पति-पारा (Vegetable Mercury यक्ष) कहा जाता है। यह दवा पसीना लाकर पुराने बुखारों को उतारती और शरीर में उपस्थित विषों को निकाल देती है। मोटापा और वजन कम करने में बहुत गुणकारी है। साँप और बिच्छू का विष दूर करने के लिए इसको मुख द्वारा और बाह्य दोनों रूपों में प्रयोग किया जाता है। श्लीपद और अंडकोष बहुत बड़ा हो जाने में इसकी छाल को गोमूत्र में रगड़कर लेप करने से लाभ होता है। जड़ का पाउडर सिगरेट और तम्बाकू के रूप में चिलम में रखकर पीना उपदेश रोग में बहुत अनुभूत है। महाभारत में एक रोचक घटना लिखी गई है कि उद्दालक नामक एक मनुष्य भूख लगने पर आक के पत्ते खा लेता। काफी समय तक आक के पत्ते खाते रहने से वह बहुत दुबला-पतला और अँधा हो गया। इससे सिद्ध होता है कि इसका टिक्चर अल्प मात्रा में लेते रहने से मोटापा और अंधापन दूर हो जाता है।
उपदंश और दूसरे घावों को ठीक करने में भी आक बहुत रामबाण है। उपदेश, कठमाला और शोथ, पीप वाले फोड़ों के कारण उत्पन्न ज्वर को उतारने में भी बहुत लाभकारी है। रात को अंधा हो जाना, फोड़े-फुन्सी, खुजली और चर्म रोगों को दूर करती है। उपदंश, कुष्ठ के घाव, आमाशय और अन्तड़ियों में आग की भाँति तीव्र जलन प्रतीत होना आदि कष्ट इसके टिक्चर से दूर हो जाते हैं। उपदंश के कारण उत्पन्न दमा में भी बहुत लाभप्रद है।
इसके टिक्चर की मात्रा एक से पाँच बूँद है। इसको थोड़े पानी में मिलाकर दिन में दो-तीन बार रोग की कमी या अधिकता के अनुसार दें। रोगी पर इसके प्रभावों को देखकर ही धीरे-धीरे इसकी मात्रा बढ़ायें। आरंभ में एक या दो बूंदें दवा ही घोड़े पानी में मिलाकर पिलायें।