Gynocordia Homoeopathic medicine benefit in hindi – Gynocordia के लाभ
चालमूंगरा (Gynocordia)
हजारों वर्षों से इस वृक्ष के बीज और तेल कुष्ठ रोग के लिए यह सफलतापूर्वक प्रयोग किये जा रहे हैं। इस वृक्ष के बीजों से टिक्चर बनाया गया है। यह कुष्ठ (कोढ), चम्बल, पुराना एक्ज़ीमा, पुराने जोड़ों के दर्द और क्षय रोग, आतशक (उपदश) और दूसरे चर्म रोगों में बहुत सफल सिद्ध हुआ है। कुष्ठ रोग को दूर करने के लिये इसके बीज, तेल, टिंक्चर और ऐलक्लाईड मुख द्वारा तथा इन्जेक्शन के रूप में प्रयोग किये जा रहे हैं। इस भयानक रोग में 5 से 20 बूँदें टिक्चर थोडे पानी में मिलाकर दिन में तीन बार कई मास तक पिलाते रहने से कोढ़ के घाव भरने लग जाते हैं और पीप खुष्क होने लग जाती है। इसके साथ ही इसके टिक्चर या तेल को समभाग नीम के तेल में मिलाकर मरहम बनाकर घावों और चर्म पर दिन में 1-2 बार मलते भी रहें या इसका तेल 5 बूँदें मक्खन या दूध में मिलाकर दोनों समय भोजन के बाद पिलाते रहें। धीरे-धीरे तेल की मात्रा बढ़ाते जाये यहाँ तक कि तेल की मात्रा 30 बूँदें तक पहुँच जाये। कैप्सूल में डालकर तेल पीने से कष्ट कम होता है। कई मास दवा का प्रयोग करना जरूरी है। कुष्ठ रोगों में इसको खिलाने पर रोगी को माँस-मछली, नमक, गर्म मसाले, खट्टे पदार्थ और मिठाइयाँ इत्यादि बिल्कुल बंद कर दें। परंतु रोगी को भी मक्खन अधिक मात्रा में खिलाते रहें। क्षय रोग में इसके तेल की फेफड़ों पर मालिश करने से बहुत लाभ होता है। उपदंश, चम्बल, एक्जीमा, गठिया और चर्म रोगों में भी इस दवा को प्रयोग किया जाता है। शुरू-शुरू में इसका तेल रोगियों को अनुकूल नहीं पड़ता परन्तु इसका टिक्चर पानी में मिलाकर पीने से कोई कष्ट नहीं होता चालमूगरा का वृक्ष पूर्वी बंगाल और म्यांमार में बहुत होता है। बंगाल में इसके बीज और तेल पंसारियों से खरीदे जा सकते हैं।