Solanum Xanthocarpum Q Benefit in hindi, Solanum Xanthocarpum Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi
Solanum Xanthocarpum Q Benefit in hindi, Solanum Xanthocarpum Q की जानकारी लाभ और फायदे in hindi
सोलेनम जैन्थोकार्पम (Solanum Xanthocarpum Q )
विभिन्न नाम-हि कटेरी, भटकटैया, कंटकारी, वं. कण्टकारी म, रिग्डणी, गु. बेठी भोरिंगणी, क. नेल्ल गुल्लु, ते. चल्लन मुलग, मा पसर कटाई, पं. कड़ियारी, ता. कण्डनकत्तरि, अ. हदक फा. बादंगानबरी। यह भारत के सब प्रान्तों और प्राय सब प्रकार की मिट्टी में पाया जाता है। रेतीली
भूमि पर अन्य की अपेक्षा कुछ अधिक पाया जाता है। इसका मदर टिंक्चर्ज उत्तम मूत्रल (पेशाब लाने वाली), कफ को निकालने वाला, ज्वर को हरण करने वाला, वेदना को शमन करने वाले औषधि गुणों से युक्त है। इसका मुख्य उपयोग खाँसी, श्वास (दमा) प्रतिश्याय, ज्वर, अंगों में दर्द, पार्श्वपीड़ा, हृदय रोग, आध्मान (अफारा) कब्ज, पथरी (अश्मरी) और वमन में होता है।
शारीरिक वेदना में ज्वर के साथ खाँसी हो तो इसके सेवन से पीड़ा का शमन होता है। कुछ पसीना आकर, मूत्र की भी वृद्धि होती है। कष्टों से मुक्ति मिल जाती है। शरीर में नयी शक्ति भी पैदा होती है।
इसके सेवन से गला एवं प्रवास नलिका की शुष्कता कम होकर कफ ढीला होने लगता है। अत गले की सूजन, स्वरथन्त्र शोथ, श्वासनलिका शोध आदि की प्रथमावस्या में इसके प्रयोग से अच्छी सफलता मिलती है। तमक श्वास (दमा) में खाँसी करते करते जब उल्टी हो जाती हो तो इसका सेवन करायें। स्वरभेद या स्वरभंग (Aphonia) में इसके सेवन से स्वर की शुद्धि तथा आवाज साफ हो जाती है। यह मूत्रकृच्छता, वस्तिगत अश्मरी अर्थात् मूत्राशय की पथरी, जलोदर आदि में
भरोसे के साथ दी जाती है। इसके सेवन से मूत्रदोष दूर होते हैं। मूत्र पथरी में इसके मंदर टिकवर्ज को दही के स्वच्छ पानी में मिलाकर प्रतिदिन 2-3 बार सेवन करायें। यदि दाँतों में कीड़ा लगा हो तो रूई को मदर टिक्चर्ज में भिगोकर दाँतों के गढ़ में रखें। मुखपाक, मुँह के छाले आदि में मदर टिक्चर्ज को नौगुना (1 9) पानी में मिलाकर गण्डूष, (गरारे) कराये या कुल्ला करने की राय दें।
पीड़ायुक्त अर्श के मस्सों पर मदर टिनचर्ज को सफेद वैसलीन में मिलाकर लगायें। पीड़ा का शमन होगा। आमवात में इसका आन्तरिक और बाहरी प्रयोग किया जाता है, इससे लाभ भी होता है। गले में सूजन होने से इसे तेल में मिलाकर बाहरी प्रयोग करें। सुजाक (गोनोरिया Gonorrhoea) में भी यह लाभदायक है लेकिन कुछ अधिक समय तक सेवन करना पड़ता है।
नोट– श्वेत कंटकारी के विषय में कहा जाता है कि इसकी ताजी जड़ दूध में पीसकर मासिक स्राव के दिनों में स्त्री को पिला दिया जाये तो गर्भ धारण हो जाता है ।
मात्रा– 5 से 15 बूँदें प्रतिदिन 3-4 बार पथरी रोग में दही के पानी के साथ एवं अन्य रोगों में मात्र पानी को ही अनुपान रूप में प्रयोग करें।